Mobile app download

Surah al-Fath with English Translation

Irfan Ul Quran

Read Surah al-Fath with English & Urdu translations of the Holy Quran online by Shaykh ul Islam Dr. Muhammad Tahir ul Qadri. It is the 48th Surah in the Quran Pak with 29 verses. The surah's position in the Quran Majeed in Juz 26 and it is called Madani Surah of Quran Karim. You can listen to audio with Urdu translation of Irfan ul Quran in the voice of Tasleem Ahmed Sabri.

Listen Full Surah - Loading.....
or

اللہ کے نام سے شروع جو نہایت مہربان ہمیشہ رحم فرمانے والا ہے
In the Name of Allah, the Most Compassionate, the Ever-Merciful
Play Copy
اِنَّا فَتَحۡنَا لَکَ فَتۡحًا مُّبِیۡنًا ۙ﴿۱﴾

1. (اے حبیبِ مکرم!) بیشک ہم نے آپ کے لئے (اسلام کی) روشن فتح (اور غلبہ) کا فیصلہ فرما دیا (اس لئے کہ آپ کی عظیم جدّ و جہد کامیابی کے ساتھ مکمل ہوجائے)o

1. (O Esteemed Beloved!) Surely, We decreed for you a clear victory (and the dominance of Islam so that your great struggle might be completed with success),

1. Inna fatahna laka fathan mubeenan

1. (Kjære høyaktede elskede ﷺ!) Sannelig, Vi har tildelt deg en soleklar seier (for islam og overmakt, så ditt storartede strev og din innsats kan bli fullført med framgang),

1. (ऐ हबीबे मुकर्रम!) बेशक हमने आपके लिए (इस्लाम की) रौशन फत्ह (और ग़ल्बे) का फैसला फरमा दिया। (इसलिए कि आपकी अ़ज़ीम जिद्दो जहद कामयाबी के साथ मुकम्मल हो जाए) ।

১. (হে সম্মানিত হাবীব!) নিশ্চয়ই আমরা আপনার জন্যে (ইসলামের) সমুজ্জ্বল বিজয় (এবং আধিপত্য) নির্ধারণ করেছি (যাতে আপনার সুমহান প্রচেষ্টা সফলতার সাথে পূর্ণতা পায়)

(al-Fath, 48 : 1)
Play Copy
لِّیَغۡفِرَ لَکَ اللّٰہُ مَا تَقَدَّمَ مِنۡ ذَنۡۢبِکَ وَ مَا تَاَخَّرَ وَ یُتِمَّ نِعۡمَتَہٗ عَلَیۡکَ وَ یَہۡدِیَکَ صِرَاطًا مُّسۡتَقِیۡمًا ۙ﴿۲﴾

2. تاکہ آپ کی خاطر اللہ آپ کی امت (کے اُن تمام اَفراد) کی اگلی پچھلی خطائیں معاف فرما دے٭ (جنہوں نے آپ کے حکم پر جہاد کیے اور قربانیاں دیں) اور (یوں اسلام کی فتح اور امت کی بخشش کی صورت میں) آپ پر اپنی نعمت (ظاہراً و باطناً) پوری فرما دے اور آپ (کے واسطے سے آپ کی امت) کو سیدھے راستہ پر ثابت قدم رکھےo

٭ یہاں حذفِ مضاف واقع ہوا ہے۔ مراد ”ما تقدم من ذنب أمتک و ما تاخر“ ہے، کیونکہ آگے اُمت ہی کے لئے نزولِ سکینہ، دخولِ جنت اور بخششِ سیئات کی بشارت کا ذکر کیا گیا ہے۔ یہ مضمون آیت نمبر 1 سے 5 تک ملا کر پڑھیں تو معنی خود بخود واضح ہو جائے گا؛ اور مزید تفصیل تفسیر میں ملاحظہ فرمائیں۔ جیسا کہ سورۃ المؤمن کی آیت نمبر 55 کے تحت مفسرین کرام نے بیان کیا ہے کہ ”لِذَنبِکَ“ میں ”امت“ مضاف ہے جو کہ محذوف ہے۔ لہٰذا اس بناء پر یہاں وَاستَغفِر لِذَنبِکَ سے مراد امت کے گناہ ہیں۔ امام نسفی، امام قرطبی اور علامہ شوکانی نے یہی معنی بیان کیا ہے۔ حوالہ جات ملاحظہ کریں:- 1: (وَاستَغفِر لِذَنبِکَ) أی لذنب أمتک یعنی اپنی امت کے گناہوں کی بخشش طلب کیجئے۔ (نسفی، مدارک التنزیل و حقائق التاویل، 4: 359)۔ 2: (وَاستَغفِر لِذَنبِکَ) قیل: لذنب أمتک حذف المضاف و أقیم المضاف الیہ مقامہ۔ ”واستغفر لذنبک کے بارے میں کہا گیا ہے کہ اس سے مراد امت کے گناہ ہیں۔ یہاں مضاف کو حذف کر کے مضاف الیہ کو اس کا قائم مقام کر دیا گیا۔“ (قرطبی، الجامع لاحکام القرآن، 15: 324)۔ 3: وَ قیل لذنبک لذنب أمتک فی حقک ”یہ بھی کہا گیا ہے کہ لذنبک یعنی آپ اپنے حق میں امت سے سرزد ہونے والی خطاؤں کی بخشش طلب کیجئے۔“ (ابن حیان اندلسی، البحر المحیط، 7: 471)۔ 4: (وَاستَغفِر لِذَنبِکَ) قیل: المراد ذنب أمتک فھو علی حذف المضاف ”کہا گیا ہے کہ اس سے مراد امت کے گناہ ہیں اور یہ معنی مضاف کے محذوف ہونے کی بناء پر ہے۔“ (علامہ شوکانی، فتح القدیر، 4: 497)۔

2. So that Allah forgives, for your sake, all the earlier and later sins (of all those people) of your Umma ([Community]* who struggled, fought and sacrificed by your command), and (this way) may complete His blessing on you (outwardly and inwardly) in the form of Islam’s victory and forgiveness for your Umma (Community), and may keep (your Umma) firm-footed on the straight path (through your mediation),

* The co-related noun is estimated and has been omitted here. The intention is ma taqaddama min dhanbi ummati-ka wa ma ta’akhkhar. It is because the following subject relates to glad tidings of sending down tranquillity, admission to Paradise and forgiveness of sins. If Verses 1 to 5 are studied together, the meaning will become self-evident. The leading exegetes have elucidated it under Verse 55 of Sura al-Mu’min. In li-dhanbi-ka the co-related noun is Umma which is omitted. On this basis, therefore, wa-staghfir li-dhanbi-ka denotes the sins committed by Umma. The leading scholars Imam al-Nasafi, Imam al-Qurtubi and al-Shawkani have drawn the same meaning. To summarise:

1. Wa-staghfir li-dhanbi-ka means li-dhanbi Ummati-ka, that is, the sins of your Umma. (al-Nasafi in Madarik al-Tanzil wa Haqa’iq al-Ta’wil, 4:359.)

2. Wa-staghfir li-dhanbi-ka means li-dhanbi Ummati-ka, hudhifa al-mudaf wa uqima al-mudaf il-ayh maqama-hu. It is stated that wa-staghfir li-dhanbi-ka implies the sins of Umma. The co-related noun has been omitted in the given phrase and is represented by the noun it is co-related to. (al-Qurtubi in al-Jami‘ li-Ahkam al-Qur’an, 15:324.)

3. Wa qila li-dhanbi Ummati-ka fi haqqi-ka. This is also expositioned that li-dhanbi-ka means for the misdeeds committed by Umma pertaining to what is your due. (Ibn Hayyan al-Andalusi in al-Bahr al-Muhit, 7:471.)

4. Wa-staghfir li-dhanbi-ka means dhanbi Ummati-ka, fa-huwa ‘ala hadhfi al-mudaf. It implies the sins of Umma and this interpretation is based on omission of the co-related noun. (al-Shawkani in Fath al-Qadir, 4:497.)

2. Liyaghfira laka Allahu ma taqaddama min thanbika wama taakhkhara wayutimma niAAmatahu AAalayka wayahdiyaka siratan mustaqeeman

2. sånn at Allah for din skyld kan tilgi dine tilhengeres alle tidligere og senere feiltrinn (de personene av det muslimske samfunnet som kjempet på din befaling og ofret seg selv)*, og for å fullbyrde Sin velsignelse (fysisk og åndelig) av deg (ved å gi islam seieren og tilgivelse til det muslimske samfunnet) og med deg (som mellomledd) holde (det muslimske samfunnets) føtter stø på rettledningens vei,

* Andreleddet i genitivsuttrykket er underforstått her, og det er «dine tilhengere» (det muslimske samfunnet), derfor betyr ordene li-yaghfira laka-llāho mā taqaddama min żambika wa mā ta-akhkhara («Sånn at Allah kan tilgi deg dine tidligere og senere feiltrinn») «Sånn at Allah for din skyld kan tilgi dine tilhengeres alle tidligere og senere feiltrinn». For videre i kapittelet bebudes det gledens ord om nedsendelse av sjelefred til tilhengerne, at de vil få stige inn i paradiset, og at deres synder vil bli tilgitt. Har man dette for øyet og leser vers 48:1–48:5, vil versets betydning bli innlysende av seg selv. For å forstå denne tolkningen kan man sammenligne den med vers 40:55, som er blitt tolket på samme måte, se: Nasafi (4:359), Qortobi (15:324), al-Bahr-ol-mohīt(7:471) og Shaukāni (4:497).

2. ताकि आपकी ख़ातिर अल्लाह आपकी उम्मत (के उन तमाम अफराद) की अगली पिछली ख़ताएं मुआफ़ फरमा दे * (जिन्होंने आपके हुक्म पर जिहाद किए और कुर्बानियां दीं) और (यूं इस्लाम की फत्ह और उम्मत की बख़्शिश की सूरत में) आप पर अपनी नेअ़मत (ज़ाहिरन व बातिनन) पूरी फरमा दे और आप (के वास्ते से आपकी उम्मत) को सीधे रास्ते पर साबित क़दम रखे।

* (यहां हज़फे मुज़ाफ वाक़ेअ़ हुवा है। मुराद ما تقدم من ذنب امتک وما تاخر है। क्योंकि आगे उम्मत ही के लिए नुज़ूले सकीना, दुख़ूले जन्नत और बख़्शिशे सय्यिआत की बिशारत का ज़िक्र किया गया है। ये मज़्मून आयत नंबर: 1 से 5 तक मिलाकर पढे़ं तो मअ़ना ख़ुद बख़ुद वाज़ेह हो जाएगा और मज़ीद तफ्सील तफ्सीर में मुलाहिज़ा फरमाएं। जैसा कि सूरह मुअमिन की आयत नंबर 55 के तहत मुफस्सिरीने किराम ने बयान किया है कि لذنبک में “उम्मत” मुज़ाफ है जो कि महज़ूफ है, लिहाज़ा इस बिना पर यहां واستغفر لذنبک से मुराद उम्मत के गुनाह हैं। इमाम नस्फी, इमाम क़ुर्तबी और अ़ल्लामा शौकानी ने येही मअ़ना बयान किया है। - हवाला जात मुलाहिज़ा करें: 1. (واستغفر لذنبک) ای لذنب امتک“यानी अपनी उम्मत के गुनाहों की बख़्शिश तलब कीजिए”। (नस्फी, मदारिकुत्‌ तंज़ील व हकाइकुत्‌ तावील, 4: 359) 2 (واستغفر لذنبک) قیل: لذنب امتک حذف المضاف و اقیم المضاف الیہ مقامہ" واستغفر لذنبک के बारे में कहा गया है कि इससे मुराद उम्मत के गुनाह हैं। यहां मुज़ाफ को हज़फ करके मुज़ाफ इलैह को उसका क़ाइम मक़ाम कर दिया गया।” (क़ुर्तबी, अल जामेअ लेअहकामिल क़ुरआन, 15: 324) 3. وقیل لذنبک لذنب امتک فی حقک ये भी कहा गया है कि لذنبک यानी आप अपने हक़्क़ में उम्मत से सरज़द होने वाली ख़ताओं की बख़्शिश तलब कीजिए।” (इब्ने हय्यान, उन्दुलुसी, अल बहरुल मुहीत, 7: 471) 4. (واستغفر لذنبک) قیل المر ادذنب امتک فھر علی حذف المضاف “ कहा गया है कि इससे मुराद उम्मत के गुनाह हैं और ये मअ़ना मुज़ाफ के महज़ूफ होने की बिना पर है।” (अ़ल्लामा शौकानी, फत्हुल क़दीर, 4: 497) )

,২. যেন আল্লাহ্ আপনার কারণে আপনার (সেসব) উম্মতের পূর্বাপর গোনাহসমূহ মার্জনা করেন* (যারা আপনার নির্দেশে সংগ্রাম করেছে, জিহাদ করেছে এবং ত্যাগ স্বীকার করেছে) আর (এভাবে ইসলামের বিজয় এবং উম্মতের ক্ষমার আকারে) আপনার প্রতি তাঁর অনুগ্রহ (বাহ্যিক ও আভ্যন্তরীণভাবে) পূর্ণ করেন এবং আপনার সত্তাকে (অর্থাৎ আপনার মাধ্যমে আপনার উম্মতকে) সরল পথের উপর অবিচল রাখেন

*এখানে মুযাফ উহ্য রয়েছে, অর্থাৎ ‘মা তাকাদ্দামা মিন জাম্বি উম্মাতিকা ওয়ামা তাআখ্খারা’। কেননা পরের অংশে উম্মতের জন্যে প্রশান্তি অবতরণ, জান্নাতে প্রবেশ এবং গোনাহ মাফ হওয়ার সুসংবাদ উল্লেখ করা হয়েছে। এ বিষয়টি ১ নং আয়াত থেকে ৫ নং আয়াত পর্যন্ত মিলিয়ে পড়ুন, তাহলে নিজে নিজেই সুস্পষ্ট হয়ে যাবে। আরো বিস্তারিত তাফসীরের কিতাবে দেখুন। যেমন সূরা- মুমিনের ৫৫ নং আয়াতের অধীনে মুফাসসিরীন বর্ণনা করেছেন যে, ‘লিযাম্বিকা’য় ‘উম্মত’ মুযাফ, যা উহ্য রয়েছে। একারণে এর ভিত্তিতে ‘ওয়াস তাগফির লিযাম্বিকা’ দ্বারা উদ্দেশ্য উম্মতের গোনাহ। ইমাম নাসাফী, ইমাম কুরতুবী ও আল্লামা শাউক্বানী এ অর্থই বর্ণনা করেছেন। উদ্ধৃতিসহ লক্ষ্য করুন, ১. (ওয়াস্তাগ্ফির লিযাম্বিকা) অর্থাৎ লিযাম্বি উম্মাতিকা অর্থাৎ আপনার উম্মতের গোনাহের ক্ষমা প্রার্থনা করুন। (নাসাফী, মাদারিকুত তানযীল ওয়া হাক্বায়িকুত তাবিল, ৪:৩৫৯)। ২. (ওয়াস্তাগ্ফির লিযাম্বিকা) কেউ কেউ বলেছেন, লিযাম্বি উম্মাতিকা হযফ‚ল মুযাফ ওয়া উক্বিমাল মুযাফু ইলাইহি মাকামাহু। ওয়াসতাগফির লিযাম্বিকা এর ব্যাপারে বলা হয়ে থাকে এর দ্বারা উদ্দেশ্য উম্মতের গোনাহ। এখানে মুযাফকে উহ্য রেখে মুযাফে ইলাইহিকে এর স্থলবর্তী করে দেয়া হয়েছে। (কুরতুবী, আল-জামিউ লিআহকামিল কুরআন, ১৫:৩২৪)। ৩. ওয়া ক্বীলা লিযাম্বি উম্মাতিকা ফী হাক্কিকা; এও বলা হয়ে থাকে যে, লিযাম্বিকা অর্থাৎ আপনি আপনার ক্ষেত্রে উম্মতের দ্বারা সংঘটিত গোনাহসমূহের জন্যে ক্ষমা প্রার্থনা করুন। (ইবনে হাইয়্যান আন্দুলুসী, আল-বাহরুল মুহীত, ৭:৪৭১।) ৪. (ওয়াস্তাগ্ফির লিযাম্বিকা) ক্বিলা: আল-মুরাদু যাম্বু উম্মাতিকা ফাহুয়া আলা হাযফিল মুযাফ। বলা হয়ে থাকে যে এর দ্বারা উদ্দেশ্য উম্মতের গোনাহ। আর এ অর্থ মুযাফ উহ্য মেনে নেয়ার কারণে। (আল্লামা শাউকানী, ফতহুল কাদীর, ৪:৪৯৭।)

(al-Fath, 48 : 2)
Play Copy
ہُوَ الَّذِیۡۤ اَنۡزَلَ السَّکِیۡنَۃَ فِیۡ قُلُوۡبِ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ لِیَزۡدَادُوۡۤا اِیۡمَانًا مَّعَ اِیۡمَانِہِمۡ ؕ وَ لِلّٰہِ جُنُوۡدُ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ عَلِیۡمًا حَکِیۡمًا ۙ﴿۴﴾

4. وہی ہے جس نے مومنوں کے دلوں میں تسکین نازل فرمائی تاکہ ان کے ایمان پر مزید ایمان کا اضافہ ہو، اور آسمانوں اور زمین کے سارے لشکر اللہ ہی کے لئے ہیں، اور اللہ خوب جاننے والا، بڑی حکمت والا ہےo

4. He is the One Who sent down calmness and tranquillity into the hearts of the believers so that their faith gets increased with more faith. And all the armies of the heavens and the earth belong to Allah alone. And Allah is All-Knowing, Most Wise.

4. Huwa allathee anzala alssakeenata fee quloobi almumineena liyazdadoo eemanan maAAa eemanihim walillahi junoodu alssamawati waalardi wakana Allahu AAaleeman hakeeman

4. Han er Den som nedsendte sjelefred i de troendes hjerte, slik at troen deres skulle øke med mer tro (forvissningens kunnskap skulle bli til forvissningens øye). Og Allah tilhører alle hærskarene i himlene og på jorden, og Allah er allvitende, mest vis.

4. वोही है जिसने मोमिनों के दिलों में तस्कीन नाज़िल फरमाई ताकि उनके ईमान पर मज़ीद ईमान का इज़ाफा हो और आसमानों और ज़मीन के सारे लश्कर अल्लाह ही के लिए हैं, और अल्लाह ख़ूब जानने वाला, बड़ी हिक्मत वाला है।

৪. তিনিই মুমিনদের অন্তরে প্রশান্তি দান করেন, যাতে তাদের ঈমানের সাথে আরো ঈমান বৃদ্ধি পায় (অর্থাৎ জ্ঞাত বিশ্বাস দৃষ্টিমান বিশ্বাসে রূপান্তরিত হয়)। আর আকাশমন্ডলী ও পৃথিবীর সমস্ত বাহিনীই আল্লাহ্‌র এবং আল্লাহ্ সর্বজ্ঞ, প্রজ্ঞাবান।

(al-Fath, 48 : 4)
Play Copy
لِّیُدۡخِلَ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ وَ الۡمُؤۡمِنٰتِ جَنّٰتٍ تَجۡرِیۡ مِنۡ تَحۡتِہَا الۡاَنۡہٰرُ خٰلِدِیۡنَ فِیۡہَا وَ یُکَفِّرَ عَنۡہُمۡ سَیِّاٰتِہِمۡ ؕ وَ کَانَ ذٰلِکَ عِنۡدَ اللّٰہِ فَوۡزًا عَظِیۡمًا ۙ﴿۵﴾

5. (یہ سب نعمتیں اس لئے جمع کی ہیں) تاکہ وہ مومن مردوں اور مومن عورتوں کو بہشتوں میں داخل فرمائے جن کے نیچے نہریں رواں ہیں (وہ) ان میں ہمیشہ رہنے والے ہیں۔ اور (مزید یہ کہ) وہ ان کی لغزشوں کو (بھی) ان سے دور کر دے (جیسے اس نے ان کی خطائیں معاف کی ہیں)۔ اور یہ اللہ کے نزدیک (مومنوں کی) بہت بڑی کامیابی ہےo

5. (All these favours are put together) so that He admits the believing men and women to the Gardens with streams flowing under them. They will live in them forever. And (moreover) He removes from them their evil actions (as He has forgiven them their mistakes)—and this is a great success (of the believers) in the sight of Allah—

5. Liyudkhila almumineena waalmuminati jannatin tajree min tahtiha alanharu khalideena feeha wayukaffira AAanhum sayyiatihim wakana thalika AAinda Allahi fawzan AAatheeman

5. (Alle disse velsignelsene er samlet) for å føre de troende menn og troende kvinner inn i hager som det flyter elver under, og hvor de for alltid skal være, og for å fjerne deres forgåelser fra dem (slik som Han har tilgitt dem feiltrinnene deres). Og dette er i Allahs øyne den kjempemessige seieren (for de troende).

5. (ये सब नेअ़मतें इसलिए जमा की हैं) ताकि वोह मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को बहिश्तों में दाख़िल फरमाए जिनके नीचे नहरें रवां हैं (वोह) उनमें हमेशा रहने वाले हैं। और (मज़ीद ये कि) वोह उनकी लग़्जिशों को (भी) उनसे दूर कर दे (जैसे उसने उनकी ख़ताएं मुआफ की हैं) । और ये अल्लाह के नज़्दीक (मोमिनों की) बहुत बड़ी कामयाबी है।

৫. (এ সকল নিয়ামত এ জন্যে একত্রিত করেছেন,) যাতে তিনি মুমিন নারী ও মুমিন পুরুষগণকে প্রবেশ করাতে পারেন বেহেশতে যার তলদেশে স্রোতধারা প্রবাহমান। (তারা) এতে চিরদিন বসবাস করবে এবং (এরপরও) তিনি তাদের থেকে তাদের মন্দকর্মগুলো দূরীভূত করবেন, (যেমন তিনি তাদের পাপ মোচন করে দেবেন।) এটিই আল্লাহ্‌র দৃষ্টিতে (মুমিনদের জন্যে) মহাসাফল্য।

(al-Fath, 48 : 5)
Play Copy
وَّ یُعَذِّبَ الۡمُنٰفِقِیۡنَ وَ الۡمُنٰفِقٰتِ وَ الۡمُشۡرِکِیۡنَ وَ الۡمُشۡرِکٰتِ الظَّآنِّیۡنَ بِاللّٰہِ ظَنَّ السَّوۡءِ ؕ عَلَیۡہِمۡ دَآئِرَۃُ السَّوۡءِ ۚ وَ غَضِبَ اللّٰہُ عَلَیۡہِمۡ وَ لَعَنَہُمۡ وَ اَعَدَّ لَہُمۡ جَہَنَّمَ ؕ وَ سَآءَتۡ مَصِیۡرًا ﴿۶﴾

6. اور (اس لئے بھی کہ ان) منافق مردوں اور منافق عورتوں اور مشرک مردوں اور مشرک عورتوں کو عذاب دے جو اللہ کے ساتھ بدگمانیاں رکھتے ہیں، انہی پر بُری گردش (مقرر) ہے، اور ان پر اللہ نے غضب فرمایا اور ان پر لعنت فرمائی اور ان کے لئے دوزخ تیار کی، اور وہ بہت بُرا ٹھکانا ہےo

6. And (so that) He may punish the hypocritical men and women and the polytheistic men and women who entertain evil assumptions about Allah. For them is (predestined) an evil turn of fortune. And Allah has afflicted them with His wrath, has cursed them and has prepared for them Hell. And that is a very evil resting place.

6. WayuAAaththiba almunafiqeena waalmunafiqati waalmushrikeena waalmushrikati alththanneena biAllahi thanna alssawi AAalayhim dairatu alssawi waghadiba Allahu AAalayhim walaAAanahum waaAAadda lahum jahannama wasaat maseeran

6. Og (også for å) pine hyklerske menn og hyklerske kvinner og flergudsdyrkende menn og flergudsdyrkende kvinner, som hadde dårlige tanker om Allah. Over dem er skjebnens fæle vending (bestemt), og Allah er vred på dem og har forbannet dem, og Han har forberedt for dem helvete, og hvilken elendig avslutning på ferden det er.

6. और (इसलिए भी कि उन) मुनाफिक़ मर्दों और मुनाफिक़ औरतों और मुश्रिक मर्दों और मुश्रिक औरतों को अ़ज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरी बदगुमानियां रखते हैं, उन्ही पर बुरी गर्दिश (मुक़र्रर) है, और उन पर अल्लाह ने ग़ज़ब फरमाया और उन पर लानत फरमाई और उनके लिए दोज़ख़ तैयार की, और वोह बहुत बुरा ठिकाना है।

৬. আর (এজন্যেও যে,) তিনি শাস্তি দেবেন মুনাফিক পুরুষ ও মুনাফিক নারীদেরকে এবং মুশরিক পুরুষ ও মুশরিক নারীদেরকে যারা আল্লাহ্ সম্পর্কে মন্দ ধারণা পোষণ করে। তাদের জন্যে (নির্ধারিত) রয়েছে মন্দ চক্র এবং আল্লাহ্ তাদের উপর ক্রোধান্বিত হয়েছেন, তাদের প্রতি অভিশম্পাত করেছেন এবং তাদের জন্যে প্রস্তুত রেখেছেন জাহান্নাম। আর তা খুবই মন্দ ঠিকানা।

(al-Fath, 48 : 6)
Play Copy
اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰکَ شَاہِدًا وَّ مُبَشِّرًا وَّ نَذِیۡرًا ۙ﴿۸﴾

8. بیشک ہم نے آپ کو (روزِ قیامت گواہی دینے کے لئے اعمال و احوالِ امت کا) مشاہدہ فرمانے والا اور خوشخبری سنانے والا اور ڈر سنانے والا بنا کر بھیجا ہےo

8. Indeed, We have sent you as an eyewitness (of the actions and the state of affairs of Umma [Community] to bear testimony on the Day of Reckoning) and as a Bearer of good news and as a Warner,

8. Inna arsalnaka shahidan wamubashshiran wanatheeran

8. Sannelig, Vi har sendt deg som et vitne (over dine tilhengeres handlinger og tilstand, for at du skal kunne avlegge vitnesbyrd på dommens dag), og en gledesbudbringer og advarer,

8. बेशक हमने आपको (रोज़े क़ियामत ग़वाही देने के लिए आमालो अहवाले उम्मत का) मुशाहिदा फरमाने वाला और खु़शख़बरी सुनाने वाला और डर सुनाने वाला बनाकर भेजा है।

৮. নিশ্চয়ই আমরা আপনাকে (কিয়ামতের দিন উম্মতের কর্মকান্ড ও অবস্থাদির) প্রত্যক্ষ সাক্ষী, সুসংবাদদাতা এবং সতর্ককারী হিসেবে প্রেরণ করেছি

(al-Fath, 48 : 8)
Play Copy
لِّتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰہِ وَ رَسُوۡلِہٖ وَ تُعَزِّرُوۡہُ وَ تُوَقِّرُوۡہُ ؕ وَ تُسَبِّحُوۡہُ بُکۡرَۃً وَّ اَصِیۡلًا ﴿۹﴾

9. تاکہ (اے لوگو!) تم اللہ اور اس کے رسول پر ایمان لاؤ اور آپ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے دین) کی مدد کرو اور آپ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کی بے حد تعظیم و تکریم کرو، اور (ساتھ) اللہ کی صبح و شام تسبیح کروo

9. So that, (O people,) you may believe in Allah and His Messenger (blessings and peace be upon him) and may help his (Din [Religion]), and revere and venerate him heart and soul, and (with that) glorify Allah morning and evening.

9. Lituminoo biAllahi warasoolihi watuAAazziroohu watuwaqqiroohu watusabbihoohu bukratan waaseelan

9. sånn at dere (å, folk!), skal anta troen på Allah og Sendebudet Hans (ﷺ) og hjelpe ham (levemåten [religionen] hans) og vise ham stor respekt og (samtidig) forherlige Allahs hellighet om morgenen og aftenen.

9. ताकि (ऐ लोगो!) तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और आप (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम के दीन) की मदद करो और आप (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की बेहद ताज़ीमो तकरीम करो, और (साथ) अल्लाह की सुब्हो शाम तस्बीह करो।

,৯. যাতে (হে লোকেরা!) তোমরা আল্লাহ্ এবং তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-এঁর প্রতি ঈমান আনয়ন করো, তাঁকে সাহায্য করো, তাঁকে সীমাহীন সম্মান ও মর্যাদা প্রদান করো এবং (একই সাথে) সকাল-সন্ধা আল্লাহ্‌র মহিমা ও পবিত্রতা ঘোষণা করো।

(al-Fath, 48 : 9)
Play Copy
اِنَّ الَّذِیۡنَ یُبَایِعُوۡنَکَ اِنَّمَا یُبَایِعُوۡنَ اللّٰہَ ؕ یَدُ اللّٰہِ فَوۡقَ اَیۡدِیۡہِمۡ ۚ فَمَنۡ نَّکَثَ فَاِنَّمَا یَنۡکُثُ عَلٰی نَفۡسِہٖ ۚ وَ مَنۡ اَوۡفٰی بِمَا عٰہَدَ عَلَیۡہُ اللّٰہَ فَسَیُؤۡتِیۡہِ اَجۡرًا عَظِیۡمًا ﴿٪۱۰﴾

10. (اے حبیب!) بیشک جو لوگ آپ سے بیعت کرتے ہیں وہ اللہ ہی سے بیعت کرتے ہیں، ان کے ہاتھوں پر (آپ کے ہاتھ کی صورت میں) اللہ کا ہاتھ ہے۔ پھر جس شخص نے بیعت کو توڑا تو اس کے توڑنے کا وبال اس کی اپنی جان پر ہوگا اور جس نے (اس) بات کو پورا کیا جس (کے پورا کرنے) پر اس نے اللہ سے عہد کیا تھا تو وہ عنقریب اسے بہت بڑا اجر عطا فرمائے گاo

10. (O Beloved!) Indeed, those who pledge allegiance to you in fact pledge allegiance to Allah alone. Allah’s hand is over their hands (in the form of your hand). Then whoever breaks his pledge breaks it only to his own harm. But he who fulfils what he has promised to Allah, He will bless him with immense reward.

10. Inna allatheena yubayiAAoonaka innama yubayiAAoona Allaha yadu Allahi fawqa aydeehim faman nakatha fainnama yankuthu AAala nafsihi waman awfa bima AAahada AAalayhu Allaha fasayuteehi ajran AAatheeman

10. (Kjære elskede ﷺ!) Sannelig, de som inngår troskapsed med deg, inngår egentlig troskapsed med Allah, Allahs hånd er over deres hender (i form av din hånd). Så den som bryter troskapseden, vil selv få belastningen ved bruddet. Og den som fullbyrder det han avla som ed til Allah (at han skulle oppfylle det), vil Han snart gi en svær belønning.

10. (ऐ हबीब!) बेशक जो लोग आपसे बैअ़त करते हैं वोह अल्लाह ही से बैअ़त करते हैं, उनके हाथों पर (आपके हाथ की सूरत में) अल्लाह का हाथ है। फिर जिस शख़्स ने बैअ़त को तोड़ा तो उसके तोड़ने का वबाल उसकी अपनी जान पर होगा और जिसने (इस) बात को पूरा किया जिस (के पूरा करने) पर उसने अल्लाह से अ़हद किया था तो वोह अ़नक़रीब उसे बहुत बड़ा अज्र अ़ता फरमाएगा।

১০. (হে হাবীব!) নিশ্চয়ই যারা আপনার নিকট বাইয়াত গ্রহণ করে তারা আল্লাহ্‌রই নিকট বাইয়াত গ্রহণ করে। তাদের হাতের উপর (আপনার হাতের আকারে) আল্লাহ্‌রই হাত। অতঃপর যে বাইয়াত ভঙ্গ করে, তার এ বাইয়াত ভঙ্গের পরিণতি তার নিজেরই এবং যে তা পূর্ণ করে যা (পূর্ণ করার) প্রতিশ্রুতি সে আল্লাহ্‌র নিকট করেছে, তবে তিনি শীঘ্রই তাদেরকে প্রদান করবেন মহাপুরস্কার।

(al-Fath, 48 : 10)
Play Copy
سَیَقُوۡلُ لَکَ الۡمُخَلَّفُوۡنَ مِنَ الۡاَعۡرَابِ شَغَلَتۡنَاۤ اَمۡوَالُنَا وَ اَہۡلُوۡنَا فَاسۡتَغۡفِرۡ لَنَا ۚ یَقُوۡلُوۡنَ بِاَلۡسِنَتِہِمۡ مَّا لَیۡسَ فِیۡ قُلُوۡبِہِمۡ ؕ قُلۡ فَمَنۡ یَّمۡلِکُ لَکُمۡ مِّنَ اللّٰہِ شَیۡئًا اِنۡ اَرَادَ بِکُمۡ ضَرًّا اَوۡ اَرَادَ بِکُمۡ نَفۡعًا ؕ بَلۡ کَانَ اللّٰہُ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِیۡرًا ﴿۱۱﴾

11. عنقریب دیہاتیوں میں سے وہ لوگ جو (حدیبیہ میں شرکت سے) پیچھے رہ گئے تھے آپ سے (معذرۃً یہ) کہیں گے کہ ہمارے اموال اور اہل و عیال نے ہمیں مشغول کر رکھا تھا (اس لئے ہم آپ کی معیت سے محروم رہ گئے) سو آپ ہمارے لئے بخشش طلب کریں۔ یہ لوگ اپنی زبانوں سے وہ (باتیں) کہتے ہیں جو ان کے دلوں میں نہیں ہیں۔ آپ فرما دیں کہ کون ہے جو تمہیں اللہ کے (فیصلے کے) خلاف بچانے کا اختیار رکھتا ہو اگر اس نے تمہارے نقصان کا ارادہ فرما لیا ہو یا تمہارے نفع کا ارادہ فرما لیا ہو، بلکہ اللہ تمہارے کاموں سے اچھی طرح باخبر ہےo

11. Soon the Bedouins who lagged behind (from participating in al-Hudaybiya) will say to you (apologetically): ‘Our money matters and families kept us busy. (Therefore, we missed your company.) So ask forgiveness for us from Allah.’ They utter such (words) with their tongues that are not in their hearts. Say: ‘Who has the power to save you against (the decision) of Allah if He intends to do you harm, or if He intends to do you good? But Allah is Well Aware of what you do.

11. Sayaqoolu laka almukhallafoona mina alaAArabi shaghalatna amwaluna waahloona faistaghfir lana yaqooloona bialsinatihim ma laysa fee quloobihim qul faman yamliku lakum mina Allahi shayan in arada bikum darran aw arada bikum nafAAan bal kana Allahu bima taAAmaloona khabeeran

11. Snart vil de som ble igjen bak (som ikke deltok i Hodeybiyah-ferden) av beduinene, si til deg (unnskyldende): «Vår eiendom og våre familier holdt oss opptatte (derfor fikk vi ikke deltatt i kampen sammen med deg), så be om tilgivelse for oss.» De sier med tungen sin det som ikke er i hjertet deres. Si: «Hvem er det som har myndighet nok til å redde dere fra Allah (Allahs dom) hvis Han har til hensikt å påføre dere tap eller å gi dere vinning? Faktisk er Han vel underrettet om alt det dere gjør.

11. अ़नक़रीब देहातियों में से वोह लोग जो (हुदैबिया में शिर्कत से) पीछे रह गए थे आपसे (मा’जेरतन ये) कहेंगे कि हमारे अम्वाल और अहलो अयाल ने हमें मश्ग़ूल कर रखा था (इसलिए हम आपकी मइय्यत से महरूम रह गए) सो आप हमारे लिए बख़्शिश तलब करें। ये लोग अपनी जु़बानों से वोह (बातें) कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं हैं। आप फरमा दें कि कौन है जो तुम्हें अल्लाह के (फैसले के) ख़िलाफ बचाने का इख़्तियार रखता हो अगर उसने तुम्हारे नुक़्सान का इरादा फरमा लिया हो या तुम्हारे नफे’ का इरादा फरमा लिया हो, बल्कि अल्लाह तुम्हारे कामों से अच्छी तरह बा ख़बर है।

১১. অচিরেই যেসব মরুবাসী যারা (হুদাইবিয়্যায় অংশগ্রহণ করা থেকে) পশ্চাতে থেকে গিয়েছিল তারা (ওযর দেখিয়ে) বলবে, ‘আমাদের ধন-সম্পদ ও পরিবার-পরিজন আমাদেরকে ব্যস্ত করে রেখেছিল (এ জন্যে আমরা আপনার সাহচর্য থেকে বঞ্চিত ছিলাম)। সুতরাং আমাদের জন্যে ক্ষমা প্রার্থনা করুন।’ এরা নিজেদের মুখে যা বলে তা তাদের অন্তরে নেই। আপনি বলে দিন, ‘কে এমন আছে, যে তোমাদেরকে আল্লাহ্‌র (ফায়সালার) বিরুদ্ধে বাঁচানোর ক্ষমতা রাখে যদি তিনি তোমাদের ক্ষতি কিংবা তোমাদের কল্যাণের ইচ্ছা করেন? বরং আল্লাহ্ তোমাদের কর্মকান্ড সম্পর্কে সম্যক অবগত।

(al-Fath, 48 : 11)
Play Copy
بَلۡ ظَنَنۡتُمۡ اَنۡ لَّنۡ یَّنۡقَلِبَ الرَّسُوۡلُ وَ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ اِلٰۤی اَہۡلِیۡہِمۡ اَبَدًا وَّ زُیِّنَ ذٰلِکَ فِیۡ قُلُوۡبِکُمۡ وَ ظَنَنۡتُمۡ ظَنَّ السَّوۡءِ ۚۖ وَ کُنۡتُمۡ قَوۡمًۢا بُوۡرًا ﴿۱۲﴾

12. بلکہ تم نے یہ گمان کیا تھا کہ رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) اور اہلِ ایمان (یعنی صحابہ رضی اللہ عنھم) اب کبھی بھی پلٹ کر اپنے گھر والوں کی طرف نہیں آئیں گے اور یہ (گمان) تمہارے دلوں میں (تمہارے نفس کی طرف سے) خُوب آراستہ کر دیا گیا تھا اور تم نے بہت ہی برا گمان کیا، اور تم ہلاک ہونے والی قوم بن گئےo

12. No, in fact, you thought that the Messenger (blessings and peace be upon him) and the believers (his Companions) would never return to their families now, and (your ill-commanding selves) made that (thought) seem to your hearts far fascinating. And you imagined a highly evil speculation and became a people bound to perish.’

12. Bal thanantum an lan yanqaliba alrrasoolu waalmuminoona ila ahleehim abadan wazuyyina thalika fee quloobikum wathanantum thanna alssawi wakuntum qawman booran

12. Men dere tenkte at Sendebudet (ﷺ) og de troende (følgesvennene) aldri ville vende hjem igjen til sine familier, og denne (tanken) ble gjort svært attraktiv i hjertet deres (av deres indre), og det dere tenkte, var en svært fæl tanke, og dere ble et folk som måtte gå til grunne.»

12. बल्कि तुमने ये गुमान किया था कि रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) और अहले ईमान (यानी सहाबा रदियल्लाहु अ़न्हुम) अब कभी भी पलटकर अपने घर वालों की तरफ नहीं आएंगे और ये (गुमान) तुम्हारे दिलों में (तुम्हारे नफ्स की तरफ से) ख़ूब आरास्ता कर दिया गया था और तुमने बहुत ही बुरा गुमान किया और तुम हलाक होने वाली क़ौम बन गए।

১২. বরং তোমরা ধারণা করেছিলে যে, রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম) এবং ঈমানদারগণ (অর্থাৎ সাহাবাগণ) কখনোই তাদের পরিবার-পরিজনের নিকট ফিরে আসতে পারবেন না। আর এ (ধারণা) তোমাদের অন্তরে (তোমাদের কুপ্রবৃত্তির কারণে) খুবই প্রীতিকর মনে হয়েছিল এবং তোমরা খুবই মন্দ ধারণা করেছিলে; তোমরা তো ধ্বংসমুখী এক সম্প্রদায় হয়ে গিয়েছো।’

(al-Fath, 48 : 12)
Play Copy
وَ مَنۡ لَّمۡ یُؤۡمِنۡۢ بِاللّٰہِ وَ رَسُوۡلِہٖ فَاِنَّاۤ اَعۡتَدۡنَا لِلۡکٰفِرِیۡنَ سَعِیۡرًا ﴿۱۳﴾

13. اور جو اللہ اور اس کے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) پر ایمان نہ لائے تو ہم نے کافروں کے لئے دوزخ تیار کر رکھی ہےo

13. And whoever does not believe in Allah and His Messenger (blessings and peace be upon him), then We have prepared Hell for the disbelievers.

13. Waman lam yumin biAllahi warasoolihi fainna aAAtadna lilkafireena saAAeeran

13. Og den som ikke antar troen på Allah og Sendebudet Hans (ﷺ), for de vantro har Vi forberedt et flammende helvete.

13. और जो अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) पर ईमान न लाए तो हमने काफिरों के लिए दोज़ख़ तैयार कर रखी है।

১৩. আর যে আল্লাহ্ ও তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-এঁর প্রতি ঈমান আনে না, তবে আমরা সেসব কাফেরদের জন্যে প্রস্তুত রেখেছি জাহান্নাম।

(al-Fath, 48 : 13)
Play Copy
وَ لِلّٰہِ مُلۡکُ السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ ؕ یَغۡفِرُ لِمَنۡ یَّشَآءُ وَ یُعَذِّبُ مَنۡ یَّشَآءُ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ غَفُوۡرًا رَّحِیۡمًا ﴿۱۴﴾

14. اور آسمانوں اور زمین کی بادشاہت اللہ ہی کے لئے ہے، وہ جسے چاہتا ہے بخش دیتا ہے اور جسے چاہتا ہے عذاب دیتا ہے، اور اللہ بڑا بخشنے والا بے حد رحم فرمانے والا ہےo

14. And the Kingdom of the heavens and the earth belongs to Allah alone. He forgives whom He wills and punishes whom He wills. And Allah is Most Forgiving, Ever-Merciful.

14. Walillahi mulku alssamawati waalardi yaghfiru liman yashao wayuAAaththibu man yashao wakana Allahu ghafooran raheeman

14. Og Allah tilhører kongemakten over himlene og jorden, Han tilgir hvem Han enn vil, og Han piner hvem Han enn vil. Og Allah er mest tilgivende, evig nåderik.

14. और आस्मानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही के लिए है, वोह जिसे चाहता है बख़्श देता है और जिसे चाहता है अ़ज़ाब देता है, और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बेहद रहम फरमाने वाला है।

১৪. আর আকাশমন্ডলী ও পৃথিবীর সকল রাজত্ব তো আল্লাহ্‌রই। তিনি যাকে ইচ্ছা ক্ষমা করেন এবং যাকে ইচ্ছা শাস্তি দেন। আর আল্লাহ্ মহাক্ষমাশীল, অসীম দয়ালু।

(al-Fath, 48 : 14)
Play Copy
سَیَقُوۡلُ الۡمُخَلَّفُوۡنَ اِذَا انۡطَلَقۡتُمۡ اِلٰی مَغَانِمَ لِتَاۡخُذُوۡہَا ذَرُوۡنَا نَتَّبِعۡکُمۡ ۚ یُرِیۡدُوۡنَ اَنۡ یُّبَدِّلُوۡا کَلٰمَ اللّٰہِ ؕ قُلۡ لَّنۡ تَتَّبِعُوۡنَا کَذٰلِکُمۡ قَالَ اللّٰہُ مِنۡ قَبۡلُ ۚ فَسَیَقُوۡلُوۡنَ بَلۡ تَحۡسُدُوۡنَنَا ؕ بَلۡ کَانُوۡا لَا یَفۡقَہُوۡنَ اِلَّا قَلِیۡلًا ﴿۱۵﴾

15. جب تم (خیبر کے) اَموالِ غنیمت کو حاصل کرنے کی طرف چلو گے تو (سفرِ حدیبیہ میں) پیچھے رہ جانے والے لوگ کہیں گے: ہمیں بھی اجازت دو کہ ہم تمہارے پیچھے ہو کر چلیں۔ وہ چاہتے ہیں کہ اللہ کے فرمان کو بدل دیں۔ فرما دیجئے: تم ہرگز ہمارے پیچھے نہیں آسکتے اسی طرح اللہ نے پہلے سے فرما دیا تھا۔ سو اب وہ کہیں گے: بلکہ تم ہم سے حسد کرتے ہو، بات یہ ہے کہ یہ لوگ (حق بات کو) بہت ہی کم سمجھتے ہیںo

15. When you will set out to collect the spoils (of Khaybar), those who remained behind (in the march towards al-Hudaybiya) will say: ‘Allow us also to follow you.’ They seek to alter Allah’s Words. Say: ‘You shall by no means follow us. Allah said the same beforehand.’ So now they will say: ‘In fact, you are jealous of us.’ The truth is that they understand (the truth) but little.

15. Sayaqoolu almukhallafoona itha intalaqtum ila maghanima litakhuthooha tharoona nattabiAAkum yureedoona an yubaddiloo kalama Allahi qul lan tattabiAAoona kathalikum qala Allahu min qablu fasayaqooloona bal tahsudoonana bal kanoo la yafqahoona illa qaleelan

15. Snart vil de som ble igjen bak (under Hodeybiyah-ferden) si, når dere vil sette av gårde for å få tak i krigsbyttet (av Khaibar-slaget): «Tillatt oss å følge med dere!» De ønsker å forandre Allahs ord. Si: «Dere kan aldri få følge etter oss, dette har Allah sagt tidligere!» Men nå vil de si: «Faktisk er dere bare sjalu på oss!» Nei, tvert imot! Saken er at de begriper svært lite (av sannheten).

15. जब तुम (ख़ैबर के) अम्वाले ग़नीमत को हासिल करने की तरफ चलोगे तो (सफरे हुदैबिया में) पीछे रह जाने वाले लोग कहेंगे हमें भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे पीछे होकर चलें। वोह चाहते हैं कि अल्लाह के फरमान को बदल दें। फरमा दीजिए: तुम हर्गिज़़ हमारे पीछे नहीं आ सकते इसी तरह अल्लाह ने पहले से फरमा दिया था। सो अब वोह कहेंगे बल्कि तुम हमसे हसद करते हो, बात ये है कि ये लोग (हक़्क़ बात को) बहुत ही कम समझते हैं।

১৫. যখন তোমরা (খায়বারের) যুদ্ধলব্ধ সম্পদ সংগ্রহ করতে বের হবে, তখন (হুদাইবিয়্যার সফরে) পশ্চাতে থেকে যাওয়া লোকেরা বলবে, ‘আমাদেরকেও আপনাদের সাথে যেতে অনুমতি দিন’। তারা আল্লাহ্‌র নির্দেশ পরিবর্তন করে দিতে চায়। বলে দিন, ‘তোমরা কিছুতেই আমাদের পেছনে আসতে পারবে না, আল্লাহ্ পূর্ব থেকেই এমনটি ঘোষণা করেছেন’। সুতরাং তখন তারা বলবে, ‘বরং তোমরা আমাদেরকে হিংসা করছো’। বস্তুত এরা (সত্য বিষয়) খুব সামান্যই অনুধাবন করে।

(al-Fath, 48 : 15)
Play Copy
قُلۡ لِّلۡمُخَلَّفِیۡنَ مِنَ الۡاَعۡرَابِ سَتُدۡعَوۡنَ اِلٰی قَوۡمٍ اُولِیۡ بَاۡسٍ شَدِیۡدٍ تُقَاتِلُوۡنَہُمۡ اَوۡ یُسۡلِمُوۡنَ ۚ فَاِنۡ تُطِیۡعُوۡا یُؤۡتِکُمُ اللّٰہُ اَجۡرًا حَسَنًا ۚ وَ اِنۡ تَتَوَلَّوۡا کَمَا تَوَلَّیۡتُمۡ مِّنۡ قَبۡلُ یُعَذِّبۡکُمۡ عَذَابًا اَلِیۡمًا ﴿۱۶﴾

16. آپ دیہاتیوں میں سے پیچھے رہ جانے والوں سے فرما دیں کہ تم عنقریب ایک سخت جنگ جو قوم (سے جہاد) کی طرف بلائے جاؤ گے تم ان سے جنگ کرتے رہو گے یا وہ مسلمان ہو جائیں گے، سو اگر تم حکم مان لوگے تو اللہ تمہیں بہترین اجر عطا فرمائے گا۔ اور اگر تم رُوگردانی کرو گے جیسے تم نے پہلے رُوگردانی کی تھی تو وہ تمہیں دردناک عذاب میں مبتلا کر دے گاo

16. Say to the Bedouins lagging behind: ‘You will be called up soon (to fight) against a hard-hitting, warring people. Then you will fight them on (for the promotion of peace and human dignity), or they will become Muslims. So if you obey the command, Allah will give you an excellent reward. But if you turn away as you did before, He will make you suffer from an agonizing torment.’

16. Qul lilmukhallafeena mina alaAArabi satudAAawna ila qawmin olee basin shadeedin tuqatiloonahum aw yuslimoona fain tuteeAAoo yutikumu Allahu ajran hasanan wain tatawallaw kama tawallaytum min qablu yuAAaththibkum AAathaban aleeman

16. Si til dem som ble igjen bak av beduinene: «Snart vil dere bli kalt (til kamp) mot et folk, av svært strenge krigslystne. Dere vil vedvarende kjempe mot dem (for å fremme fred og menneskelig verdighet), eller de vil bli muslimer. Hvis dere adlyder, vil Allah gi dere en vakker lønn. Men hvis dere vender dere bort, slik som dere vendte dere bort tidligere, vil Han pine dere med en smertelig pine.»

16. आप देहातियों में से पीछे रह जाने वालों से फरमा दें कि तुम अ़नक़रीब एक सख़्त जंगजू क़ौम (से जिहाद) की तरफ बुलाए जाओगे तुम उनसे जंग करते रहोगे या वोह मुसलमान हो जाएंगे, सो अगर तुम हुक्म मान लोगे तो अल्लाह तुम्हें बेहतरीन अज्र अ़ता फरमाएगा। और अगर तुम रूगर्दानी करोगे। जैसे तुमने पहले रूगर्दानी की थी तो वोह तुम्हें दर्दनाक अ़ज़ाब में मुब्तला कर देगा।

১৬. বেদুইনদের মধ্যে যারা পশ্চাতে থেকে গিয়েছিল তাদেরকে বলুন, ‘তোমাদেরকে অচিরেই এক প্রবল যুদ্ধবাজ জাতির বিরুদ্ধে (জিহাদে) আহ্বান করা হবে। (মানবতার অগ্রগতি এবং শান্তি প্রতিষ্ঠার লক্ষ্যে) তোমরা তাদের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করবে অথবা তারা ইসলাম গ্রহণ করবে। সুতরাং যদি তোমরা আদেশ মেনে নাও তবে আল্লাহ্ তোমাদেরকে উত্তম প্রতিদান দেবেন, আর যদি তোমরা মুখ ফিরিয়ে নাও যেভাবে ইতিপূর্বে মুখ ফিরিয়ে নিয়েছিলে, তবে তিনি তোমাদেরকে যন্ত্রণাদায়ক শাস্তি দেবেন।’

(al-Fath, 48 : 16)
Play Copy
لَیۡسَ عَلَی الۡاَعۡمٰی حَرَجٌ وَّ لَا عَلَی الۡاَعۡرَجِ حَرَجٌ وَّ لَا عَلَی الۡمَرِیۡضِ حَرَجٌ ؕ وَ مَنۡ یُّطِعِ اللّٰہَ وَ رَسُوۡلَہٗ یُدۡخِلۡہُ جَنّٰتٍ تَجۡرِیۡ مِنۡ تَحۡتِہَا الۡاَنۡہٰرُ ۚ وَ مَنۡ یَّتَوَلَّ یُعَذِّبۡہُ عَذَابًا اَلِیۡمًا ﴿٪۱۷﴾

17. (جہاد سے رہ جانے میں) نہ اندھے پر کوئی گناہ ہے اور نہ لنگڑے پر کوئی گناہ ہے اور نہ (ہی) بیمار پر کوئی گناہ ہے، اور جو شخص اللہ اور اس کے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کی اطاعت کرے گا وہ اسے بہشتوں میں داخل فرما دے گا جن کے نیچے نہریں رواں ہوں گی، اور جو شخص (اطاعت سے) منہ پھیرے گا وہ اسے درد ناک عذاب میں مبتلا کردے گاo

17. There is no blame on the blind or the lame or the sick (for their disability to fight). And He who obeys Allah and His Messenger (blessings and peace be upon him), He will admit him to the Gardens with streams flowing under them. But whoever turns away (from obedience), He will punish him with a grievous torment.

17. Laysa AAala alaAAma harajun wala AAala alaAAraji harajun wala AAala almareedi harajun waman yutiAAi Allaha warasoolahu yudkhilhu jannatin tajree min tahtiha alanharu waman yatawalla yuAAaththibhu AAathaban aleeman

17. Det er ingen synd for den blinde, og ei heller er det noen synd for den halte, og heller ikke er det noen synd for den syke (å ikke delta i kamp). Og den som adlyder Allah og Sendebudet Hans (ﷺ), vil Han føre inn i hager som det flyter elver under. Men den som vender seg bort (fra lydigheten), vil Han pine med en smertelig pine.

17. (जिहाद से रह जाने में) न अंधे पर कोई गुनाह है और न लंगड़े पर कोई गुनाह है और न (ही) बीमार पर कोई गुनाह है, और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की इताअ़त करेगा वोह उसे बहिश्तों में दाख़िल फरमा देगा जिनके नीचे नहरें रवां होंगी, और जो शख़्स (इताअ़त से) मुंह फेरेगा वोह उसे दर्दनाक अ़ज़ाब में मुब्तला कर देगा।

১৭. (জিহাদ থেকে বিরত থাকায়) অন্ধের কোনো গোনাহ নেই, খোড়ার কোনো গোনাহ নেই এবং পীড়িতেরও কোনো গোনাহ্ নেই। আর যে আল্লাহ্ ও তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-এঁর আনুগত্য করবে, তিনি তাকে প্রবেশ করাবেন জান্নাতে, যার নিচ দিয়ে স্রোতধারা প্রবাহমান। কিন্তু যে (আনুগত্য থেকে) মুখ ফিরিয়ে নেবে, তিনি তাকে যন্ত্রণাদায়ক শাস্তি দেবেন।

(al-Fath, 48 : 17)
Play Copy
لَقَدۡ رَضِیَ اللّٰہُ عَنِ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ اِذۡ یُبَایِعُوۡنَکَ تَحۡتَ الشَّجَرَۃِ فَعَلِمَ مَا فِیۡ قُلُوۡبِہِمۡ فَاَنۡزَلَ السَّکِیۡنَۃَ عَلَیۡہِمۡ وَ اَثَابَہُمۡ فَتۡحًا قَرِیۡبًا ﴿ۙ۱۸﴾

18. بیشک اللہ مومنوں سے راضی ہو گیا جب وہ (حدیبیہ میں) درخت کے نیچے آپ سے بیعت کر رہے تھے، سو جو (جذبۂ صِدق و وفا) ان کے دلوں میں تھا اللہ نے معلوم کر لیا تو اللہ نے ان (کے دلوں) پر خاص تسکین نازل فرمائی اور انہیں ایک بہت ہی قریب فتحِ (خیبر) کا انعام عطا کیاo

18. Surely, Allah was well pleased with the believers when they pledged allegiance to you under the tree (at al-Hudaybiya). So (the passion of truth and fidelity) that permeated their hearts, Allah had its knowledge and sent down an exceptional calmness and tranquillity (into their hearts, and awarded them the forthcoming victory (of Khaybar),

18. Laqad radiya Allahu AAani almumineena ith yubayiAAoonaka tahta alshshajarati faAAalima ma fee quloobihim faanzala alsakeenata AAalayhim waathabahum fathan qareeban

18. Uten tvil, Allah ble tilfreds med de troende da de ga deg troskapseden under treet (i Hodeybiyah). Han kjente svært vel til den (gløden) som befant seg i hjertet deres (for oppriktighet og troskap), og Allah nedsendte en særskilt sjelefred i hjertet deres og tildelte dem en nær forestående seier (i Khaibar-slaget),

18. बेशक अल्लाह मोमिनों से राज़ी हो गया जब वोह (हुदैबिया में) दरख़्त के नीचे आपसे बैअ़त कर रहे थे, सो ज़ो (जज़्बए सिद्‌क़ो वफा) उनके दिलों में था अल्लाह ने मालूम कर लिया तो अल्लाह ने उन (के दिलों) पर ख़ास तस्कीन नाजिल फरमाई और उन्हें एक बहुत ही क़रीब फत्हे (ख़ैबर) का इन्आम अ़ता किया।

১৮. আল্লাহ্ তো মুমিনদের উপর সন্তুষ্ট হয়ে গিয়েছেন, যখন তারা (হুদায়বিয়্যায়) বৃক্ষতলে আপনার নিকট বাইয়াত গ্রহণ করেছিল। সুতরাং (সত্য ও আনুগত্যের আকর্ষণ) যা তাদের অন্তরে ছিল আল্লাহ্ তা অবগত ছিলেন। অতঃপর আল্লাহ্ তাদের (অন্তরের) প্রতি অবতীর্ণ করলেন বিশেষ প্রশান্তি এবং তাদেরকে পুরস্কার দিলেন আসন্ন (খায়বরের) বিজয়

(al-Fath, 48 : 18)
Play Copy
وَعَدَکُمُ اللّٰہُ مَغَانِمَ کَثِیۡرَۃً تَاۡخُذُوۡنَہَا فَعَجَّلَ لَکُمۡ ہٰذِہٖ وَ کَفَّ اَیۡدِیَ النَّاسِ عَنۡکُمۡ ۚ وَ لِتَکُوۡنَ اٰیَۃً لِّلۡمُؤۡمِنِیۡنَ وَ یَہۡدِیَکُمۡ صِرَاطًا مُّسۡتَقِیۡمًا ﴿ۙ۲۰﴾

20. اور اللہ نے (کئی فتوحات کے نتیجے میں) تم سے بہت سی غنیمتوں کا وعدہ فرمایا ہے جو تم آئندہ حاصل کرو گے مگر اس نے یہ (غنیمتِ خیبر) تمہیں جلدی عطا فرما دی اور (اہلِ مکہّ، اہلِ خیبر، قبائل بنی اسد و غطفان الغرض تمام دشمن) لوگوں کے ہاتھ تم سے روک دیئے، اور تاکہ یہ مومنوں کے لئے (آئندہ کی کامیابی و فتح یابی کی) نشانی بن جائے۔ اور تمہیں (اطمینانِ قلب کے ساتھ) سیدھے راستہ پر (ثابت قدم اور) گامزن رکھےo

20. And Allah has promised you abundant spoils (resulting from many victories) which you will win, but He has hastened to you this (booty of Khaybar) and has held back from you the hands of the people (of Mecca, Khaybar, Banu Asad and Ghatafan tribes and all other enemies), so that it may become a sign for the believers (of the forthcoming triumph and victory), and that He may keep you treading the straight road (firm-footed and with tranquil hearts).

20. WaAAadakumu Allahu maghanima katheeratan takhuthoonaha faAAajjala lakum hathihi wakaffa aydiya alnnasi AAankum walitakoona ayatan lilmumineena wayahdiyakum siratan mustaqeeman

20. Og Allah har lovet dere rikelig med krigsbytter (som utfall av mange seire), som dere vil få tak i. Men Han tildelte dere dette (Khaibars krigsbytte) snart og stanset folks (fiendenes, Mekkas folk, Khaibars folk, stammene Banī Asads og Ghatafāns, mange fleres) hender fra dere for at det skulle bli tegn (på kommende triumf og seier) for de troende, og for å holde dere (stø på føttene og) vandrende (med ro i hjertet) på den rette veien.

20. और अल्लाह ने (कई फुतूहात के नतीजे में) तुमसे बहुत सी ग़नीमतों का वादा फरमाया है जो तुम आइन्दा हासिल करोगे मगर उसने ये (ग़नीमते खै़बर) तुम्हें जल्दी अ़ता फरमा दी और (अह्‌ले मक्का, अह्‌ले खै़बर, क़बाइले बनी असदो ग़त्फान, अल ग़रज़ तमाम दुश्मन) लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए, और ताकि ये मोमिनों के लिए (आइन्दा की काम्याबिओ फत्हयाबी की) निशानी बन जाए। और तुम्हें (इत्मीनाने क़ल्ब के साथ) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम और) गामज़न रखे।

২০. আর আল্লাহ্ তোমাদেরকে প্রতিশ্রুতি দিয়েছেন (কয়েকটি বিজয়ের ফলশ্রুতিতে) যুদ্ধলব্ধ বিপুল সম্পদের, যা তোমরা লাভ করবে; কিন্তু তিনি তা (অর্থাৎ খায়বারের যুদ্ধে অর্জিত সম্পদ) তোমাদের জন্যে তরান্বিত করেছেন এবং তোমাদের থেকে (মক্কাবাসী, খায়বারবাসী, বনী আসাদ ও গাতফানগোত্রসহ সমস্ত দুশমন) লোকদের হাত প্রতিহত করেছেন, যাতে এটা হয় মুমিনদের জন্যে (ভবিষ্যতের সাফল্য ও বিজয়ের) এক নিদর্শন এবং তোমাদেরকে সরল পথের উপর (দৃঢ়পদ এবং) অবিচল রাখেন (অন্তরের প্রশান্তির সাথে)।

(al-Fath, 48 : 20)
Play Copy
وَّ اُخۡرٰی لَمۡ تَقۡدِرُوۡا عَلَیۡہَا قَدۡ اَحَاطَ اللّٰہُ بِہَا ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ عَلٰی کُلِّ شَیۡءٍ قَدِیۡرًا ﴿۲۱﴾

21. اور دوسری (مکّہ، ہوازن اور حنین سے لے کر فارس اور روم تک کی بڑی فتوحات) جن پر تم قادر نہ تھے بیشک اللہ نے (تمہارے لئے) ان کا بھی احاطہ فرما لیا ہے، اور اللہ ہر چیز پر بڑی قدرت رکھنے والا ہےo

21. And other (big victories of Mecca, Hawazin and Hunayn, then Persia and Rome) over which you had no power—surely Allah has also encompassed them (for you), and Allah wields Absolute Power over everything.

21. Waokhra lam taqdiroo AAalayha qad ahata Allahu biha wakana Allahu AAala kulli shayin qadeeran

21. Og andre (store seire fra Mekka, Hawazin og Honeyn til Persia og Romerriket), som dere egentlig ikke evnet, har Allah i sannhet omsluttet (for dere). Allah har fullstendig makt over alle ting.

21. और दूसरी (मक्का, हवाज़न और हुनैन से लेकर फारस और रूम तक की बड़ी फुतूहात) जिन पर तुम क़ादिर न थे बेशक अल्लाह ने (तुम्हारे लिए) उनका भी इहाता फरमा लिया है, और अल्लाह हर चीज़ पर बड़ी क़ुदरत रखने वाला है।

২১. আর অপরাপর (মক্কা, হাওয়াযিন এবং হুনাইন থেকে পারস্য ও রোম পর্যন্ত মহান বিজয়সমূহ) যাদের উপর তোমরা ক্ষমতাধর ছিলে না; নিশ্চয়ই আল্লাহ্ (তোমাদের জন্যে) তাদেরকেও আয়ত্বে রেখেছেন। আর আল্লাহ্ সর্ববিষয়ে ক্ষমতাবান।

(al-Fath, 48 : 21)
Play Copy
وَ لَوۡ قٰتَلَکُمُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا لَوَلَّوُا الۡاَدۡبَارَ ثُمَّ لَا یَجِدُوۡنَ وَلِیًّا وَّ لَا نَصِیۡرًا ﴿۲۲﴾

22. اور (اے مومنو!) اگر کافر لوگ (حدیبیہ میں) تم سے جنگ (شروع) کر دیتے تو وہ ضرور پیٹھ پھیر کر بھاگ جاتے، پھر وہ نہ کوئی دوست پاتے اور نہ مددگار (مگر اللہ کو معاہدۂ اَمن کے ذریعے تمہارے لیے کئی فتوحات کا دروازہ کھولنا مقصود تھا)o

22. And, (O believers,) if the disbelievers had (initiated war and) fought with you (at al-Hudaybiya), they would certainly have fled turning their backs and found no friend and helper. (But Allah intended to open the door of victories to you through the treaty of peace.)

22. Walaw qatalakumu allatheena kafaroo lawallawoo aladbara thumma la yajidoona waliyyan wala naseeran

22. Og (å, dere troende!), hvis de vantro hadde (initiert krig og) kjempet mot dere (i Hodeybiyah), ville de visselig ha snudd ryggen til og flyktet; deretter ville de ikke ha funnet en eneste velynder og ei heller hjelper (men Allah ville åpnet flere seiersdører for dere enn bare denne ene gjennom dialog og fredsforhandlinger).

22. और (ऐ मोमिनो!) अगर काफिर लोग (हुदैबिया में) तुम से जंग (शुरू) कर देते तो वोह ज़रूर पीठ फेरकर भाग जाते, फिर वोह न कोई दोस्त पाते और न मददगार (मगर अल्लाह को मुआ़हिदए अम्न केज़रिए तुम्हारे लिए कई फु़तूहात का दरवाजा़ खोलना मक़सूद था) ।

২২. আর (হে ঈমানদারগণ!) যদি কাফেরেরা (হুদাইবিয়্যায়) তোমাদের বিরুদ্ধে যুদ্ধ (শুরু) করতো, তবে নিশ্চয়ই তারা পৃষ্ঠ প্রদর্শন করে পলায়ন করতো, তখন তারা না পেতো কোনো বন্ধু, আর না সাহায্যকারী। (কিন্তু আল্লাহ্ কর্তৃক নিরাপত্তার অঙ্গীকারের মাধ্যমে তোমাদের জন্যে বিজয়ের কয়েকটি দরোজা খোলাই ছিল উদ্দেশ্য।)

(al-Fath, 48 : 22)
Play Copy
وَ ہُوَ الَّذِیۡ کَفَّ اَیۡدِیَہُمۡ عَنۡکُمۡ وَ اَیۡدِیَکُمۡ عَنۡہُمۡ بِبَطۡنِ مَکَّۃَ مِنۡۢ بَعۡدِ اَنۡ اَظۡفَرَکُمۡ عَلَیۡہِمۡ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ بَصِیۡرًا ﴿۲۴﴾

24. اور وہی ہے جس نے سرحدِ مکّہ پر (حدیبیہ کے قریب) ان (کافروں) کے ہاتھ تم سے اور تمہارے ہاتھ ان سے روک دیئے اس کے بعد کہ اس نے تمہیں ان (کے گروہ) پر غلبہ بخش دیا تھا۔ اور اللہ ان کاموں کو جو تم کرتے ہو خوب دیکھنے والا ہےo

24. And He is the One Who held back the hands of those (disbelievers) from you and your hands from them on the frontier of Mecca (near al-Hudaybiya) after giving you the upper hand over their (party). And Allah best monitors what you do.

24. Wahuwa allathee kaffa aydiyahum AAankum waaydiyakum AAanhum bibatni makkata min baAAdi an athfarakum AAalayhim wakana Allahu bima taAAmaloona baseeran

24. Og Han er Den som stanset hendene deres (vantros) fra dere og deres hender fra dem ved Mekkas grense (like ved Hodeybiyah) etter at Han ga dere overtaket over dem (deres parti). Allah er allseende overfor alt det dere gjør.

24. और वोही है जिसने सरहदे मक्का पर (हुदैबिया के क़रीब) उन (काफिरों) के हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे रोक दिए इसके बाद कि उसने तुम्हें उन (के गिरोह) पर ग़ल्बा बख़्श दिया था। और अल्लाह उन कामों को जो तुम करते हो ख़ूब देखने वाला है।

২৪. আর তিনিই মক্কা উপত্যকায় (হুদাইবিয়্যার নিকটে) তাদের হস্ত তোমাদের থেকে এবং তোমাদের হস্ত তাদের থেকে সংবরণ করেছিলেন, তোমাদেরকে তাদের (দলের) উপর আধিপত্য প্রদান করার পর। আর তোমরা যা করো আল্লাহ্ তা দেখেন।

(al-Fath, 48 : 24)
Play Copy
ہُمُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا وَ صَدُّوۡکُمۡ عَنِ الۡمَسۡجِدِ الۡحَرَامِ وَ الۡہَدۡیَ مَعۡکُوۡفًا اَنۡ یَّبۡلُغَ مَحِلَّہٗ ؕ وَ لَوۡ لَا رِجَالٌ مُّؤۡمِنُوۡنَ وَ نِسَآءٌ مُّؤۡمِنٰتٌ لَّمۡ تَعۡلَمُوۡہُمۡ اَنۡ تَطَـُٔوۡہُمۡ فَتُصِیۡبَکُمۡ مِّنۡہُمۡ مَّعَرَّۃٌۢ بِغَیۡرِ عِلۡمٍ ۚ لِیُدۡخِلَ اللّٰہُ فِیۡ رَحۡمَتِہٖ مَنۡ یَّشَآءُ ۚ لَوۡ تَزَیَّلُوۡا لَعَذَّبۡنَا الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا مِنۡہُمۡ عَذَابًا اَلِیۡمًا ﴿۲۵﴾

25. یہی وہ لوگ ہیں جنھوں نے کفر کیا اور تمہیں مسجدِ حرام سے روک دیا اور قربانی کے جانوروں کو بھی، جو اپنی جگہ پہنچنے سے رکے پڑے رہے، اور اگر کئی ایسے مومن مرد اور مومن عورتیں (مکہّ میں موجود نہ ہوتیں) جنہیں تم جانتے بھی نہیں ہو کہ تم انہیں پامال کر ڈالو گے اور تمہیں بھی لاعلمی میں ان کی طرف سے کوئی سختی اور تکلیف پہنچ جائے گی (تو ہم تمہیں اِسی موقع پر ہی جنگ کی اجازت دے دیتے۔ مگر فتحِ مکّہ کو مؤخّر اس لئے کیا گیا) تاکہ اللہ جسے چاہے (صلح کے نتیجے میں) اپنی رحمت میں داخل فرما لے۔ اگر (وہاں کے کافر اور مسلمان) الگ الگ ہو کر ایک دوسرے سے ممتاز ہو جاتے تو ہم ان میں سے کافروں کو دردناک عذاب کی سزا دیتےo

25. It is they who disbelieved and hindered you from the Sacred Mosque, and prevented the sacrificial animals as well that were kept from reaching their place. And had there not been many such believing men and women (present in Mecca) as you also did not know that you might crush them underfoot without knowing, and some harm and hardship might also be caused to you by them inadvertently, (We would have allowed you there and then to fight. But the victory of Mecca was delayed) so that Allah might admit to His mercy whom He willed. Had (the disbelievers and the believers there) distinguishably drawn apart from one another, We would have punished the disbelievers with a painful torment.

25. Humu allatheena kafaroo wasaddookum AAani almasjidi alharami waalhadya maAAkoofan an yablugha mahillahu walawla rijalun muminoona wanisaon muminatun lam taAAlamoohum an tataoohum fatuseebakum minhum maAAarratun bighayri AAilmin liyudkhila Allahu fee rahmatihi man yashao law tazayyaloo laAAaththabna allatheena kafaroo minhum AAathaban aleeman

25. Disse er de som viste vantro og hindret dere fra den hellige moskeen, og offerdyrene også, som ble holdt igjen fra å nå sitt offersted. Og hadde det ikke vært for noen slike troende menn og troende kvinner (til stede i Mekka) som dere ikke kjenner og kan trampe i hjel, og som kan påføre dere lidelse uten å vite det, (ville Vi ha gitt dere tillatelse til kamp der og da, men erobringen av Mekka ble utsatt) for at Allah skulle føre inn i Sin nåde den Han ville (gjennom utfallet av fredsslutningen). Hadde (muslimene og) de (vantro der) helt klart atskilt seg fra hverandre, ville Vi ha utsatt de vantro av dem for en smertelig pine.

25. येही वोह लोग हैं जिन्होंने कुफ्र किया और तुम्हें मस्जिदे हराम से रोक दिया और क़ुर्बानी के जानवरों को भी, जो अपनी जगह पहुंचने से रुके पड़े रहे, और अगर कई ऐसे मोमिन मर्द और मोमिन औरतें (मक्का में मौजूद न होतीं) जिन्हें तुम जानते भी नहीं हो कि तुम उन्हें पामाल कर डालोगे और तुम्हें भी ला इल्मी में उनकी तरफ से कोई सख़्ती और तकलीफ पहुंच जाएगी (तो हम तुम्हें इसी मौक़े पर ही जंग की इजाज़त दे देते। मगर फत्हे मक्का को मोअख़्ख़र इसलिए किया गया) ताकि अल्लाह जिसे चाहे (सुल्ह के नतीजे में) अपनी रहमत में दाख़िल फरमा ले। अगर (वहां के काफिर और मुसलमान) अलग अलग होकर एक दूसरे से मुम्ताज़ हो जाते तो हम उनमें से काफिरों को दर्दनाक अ़ज़ाब की सज़ा देते।

২৫. এরাই কুফরী করেছিল এবং তোমাদেরকে নিবৃত্ত করেছিল মসজিদুল-হারাম থেকে, আর কুরবানীর আবদ্ধ পশুগুলোকেও যথাস্থানে পৌঁছতে বাধা দিয়েছিল। আর যদি কিছু সংখ্যক মুমিন পুরুষ ও মুমিন নারী (মক্কায় বিদ্যমান) না থাকতো, যাদের ব্যাপারে তোমরা অবগত নও, তাদেরকে তোমরা অজ্ঞাতসারে পদদলিত করে ফেলতে; অপরদিকে তাদের কারণে তোমরাও কিছু ক্ষতিগ্রস্ত হতে (তা নাহলে আমরা তোমাদেরকে এ স্থলেই যুদ্ধের অনুমতি দিয়ে দিতাম। এ কারণে মক্কা বিজয় বিলম্বিত করা হয়েছে) যেন আল্লাহ্ যাকে চান (সন্ধির মাধ্যমে) তাঁর রহমতে প্রবিষ্ট করান। যদি তারা (সেখানকার কাফের ও মুসলমান) পৃথক হয়ে যেতো, তবে আমরা তাদের মধ্যে কাফেরদেরকে যন্ত্রণাদায়ক শাস্তি দিতাম।

(al-Fath, 48 : 25)
Play Copy
اِذۡ جَعَلَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا فِیۡ قُلُوۡبِہِمُ الۡحَمِیَّۃَ حَمِیَّۃَ الۡجَاہِلِیَّۃِ فَاَنۡزَلَ اللّٰہُ سَکِیۡنَتَہٗ عَلٰی رَسُوۡلِہٖ وَ عَلَی الۡمُؤۡمِنِیۡنَ وَ اَلۡزَمَہُمۡ کَلِمَۃَ التَّقۡوٰی وَ کَانُوۡۤا اَحَقَّ بِہَا وَ اَہۡلَہَا ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ بِکُلِّ شَیۡءٍ عَلِیۡمًا ﴿٪۲۶﴾

26. جب کافر لوگوں نے اپنے دلوں میں متکبّرانہ ہٹ دھرمی رکھ لی (جو کہ) جاہلیت کی ضِد اور غیرت (تھی) تو اللہ نے اپنے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) اور مومنوں پر اپنی خاص تسکین نازل فرمائی اور انہیں کلمہء تقوٰی پر مستحکم فرما دیا اور وہ اسی کے زیادہ مستحق تھے اور اس کے اہل (بھی) تھے، اور اللہ ہر چیز کو خوب جاننے والا ہےo

26. Whilst the disbelievers anchored in their hearts the conceited obstinacy (which was) stubbornness and egocentricity of the days of ignorance, Allah sent down on His Messenger (blessings and peace be upon him) and the believers an exceptional calmness and tranquillity and made them firm on the word of Godwariness. And it is this that they were most entitled to and (also) worthy of. And Allah knows everything full well.

26. Ith jaAAala allatheena kafaroo fee quloobihimu alhamiyyata hamiyyata aljahiliyyati faanzala Allahu sakeenatahu AAala rasoolihi waAAala almumineena waalzamahum kalimata alttaqwa wakanoo ahaqqa biha waahlaha wakana Allahu bikulli shayin AAaleeman

26. Da de vantro forankret hovmodig stivsinnethet i sitt hjerte, (som var) uvitenhetstidens stahet og livsverdi, nedsendte Allah Sin sjelefred over Sendebudet Sitt (ﷺ) og de troende og gjorde dem rotfaste i gudfryktighetens ord. Og det var dette de fortjente mest, og de var det verdig. Og Allah er allvitende om alle ting.

26. जब काफिर लोगों ने अपने दिलों में मुतकब्बिराना हटधर्मी रख ली (जो कि) जाहिलिय्यत की ज़िद और ग़ैरत (थी) तो अल्लाह ने अपने रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) और मोमिनों पर अपनी ख़ास तस्कीन नाज़िल फरमाई और उन्हें कलिमए तक़्वा पर मुस्तहकम फरमा दिया और वोह उसी के ज़ियादा मुस्तहिक़ थे और उसके अहल (भी) थे, और अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है।

২৬. যখন কাফেরেরা তাদের অন্তরে অহমিকাপূর্ণ হঠকারিতা পোষণ করেছিল, (যা ছিল) জাহেলি যুগের ক্ষোভ ও অহমিকা, তখন আল্লাহ্ তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম) এবং মুমিনদের প্রতি তাঁর বিশেষ প্রশান্তি প্রদান করলেন এবং তাদেরকে পরহেযগারিতার বাণীর উপর সুদৃঢ় করলেন। আর তারা এরই অধিকতর যোগ্য এবং অধিকারী ছিলেন। আর আল্লাহ্ সমস্ত কিছু সম্পর্কে সম্যক অবগত।

(al-Fath, 48 : 26)
Play Copy
لَقَدۡ صَدَقَ اللّٰہُ رَسُوۡلَہُ الرُّءۡیَا بِالۡحَقِّ ۚ لَتَدۡخُلُنَّ الۡمَسۡجِدَ الۡحَرَامَ اِنۡ شَآءَ اللّٰہُ اٰمِنِیۡنَ ۙ مُحَلِّقِیۡنَ رُءُوۡسَکُمۡ وَ مُقَصِّرِیۡنَ ۙ لَا تَخَافُوۡنَ ؕ فَعَلِمَ مَا لَمۡ تَعۡلَمُوۡا فَجَعَلَ مِنۡ دُوۡنِ ذٰلِکَ فَتۡحًا قَرِیۡبًا ﴿۲۷﴾

27. بیشک اللہ نے اپنے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کو حقیقت کے عین مطابق سچا خواب دکھایا تھا کہ تم لوگ، اگر اللہ نے چاہا تو ضرور بالضرور مسجدِ حرام میں داخل ہو گے امن و امان کے ساتھ، (کچھ) اپنے سر منڈوائے ہوئے اور (کچھ) بال کتروائے ہوئے (اس حال میں کہ) تم خوفزدہ نہیں ہو گے، پس وہ (صلح حدیبیہ کو اس خواب کی تعبیر کے پیش خیمہ کے طور پر) جانتا تھا جو تم نہیں جانتے تھے سو اس نے اس (فتحِ مکہ) سے بھی پہلے ایک فوری فتح (حدیبیہ سے پلٹتے ہی فتحِ خیبر) عطا کر دی (اور اس سے اگلے سال فتحِ مکہ اور داخلۂ حرم عطا فرما دیا)o

27. Surely, Allah showed His Messenger (blessings and peace be upon him) the dream exactly true to the reality that, if Allah wills, you will most certainly enter the Sacred Mosque safely, (some) with heads shaved and (some) with hair cut short, (in a state of security,) having no fear. So He knew (the al-Hudaybiya treaty as a preamble to the truth of the dream) which you did not know, and gave you an immediate victory (the victory of Khaybar even before the victory of Mecca, soon after returning from al-Hudaybiya. The next year He bestowed the victory of Mecca and entry to the Sacred Mosque.)

27. Laqad sadaqa Allahu rasoolahu alrruya bialhaqqi latadkhulunna almasjida alharama in shaa Allahu amineena muhalliqeena ruoosakum wamuqassireena la takhafoona faAAalima ma lam taAAlamoo fajaAAala min dooni thalika fathan qareeban

27. Uten tvil, Allah viste Sendebudet Sitt (ﷺ) en sann drøm eksakt ifølge sannheten: «Dere vil visselig tre inn i den hellige moskeen, hvis Allah vil, i trygghet, (noen) med barberte hoder, (andre) med stussede hodehår, (i den tilstand at) dere vil være uten frykt.» Han visste (at fredsslutningen ved Hodeybiyah var som denne drømmens tydnings innledning) det dere ikke visste, og Han tildelte før den (seieren i Mekka) også en umiddelbar seier (seieren i Khaibar like etter hjemkomsten fra Hodeybiyah, og året etter ble seieren i Mekka og adgang til den hellige moskeen tildelt).

27. बेशक अल्लाह ने अपने रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) को हक़ीक़त के ऐन मुताबिक़ सच्चा ख़्वाब दिखाया था कि तुम लोग, अगर अल्लाह ने चाहा तो ज़रूर बिज़्ज़रूर मस्जिदे हराम में दाखिल होगे अम्नो अमान के साथ, (कुछ) अपने सर मुंडवाए हुए और (कुछ) बाल कतरवाए हुए (इस हाल में कि) तुम ख़ौफज़दा नहीं होगे, पस वोह (सुल्हे़ हुदैबिया को इस ख़्वाब की ताबीर के पैशेखे़मा के तौर पर) जानता था जो तुम नहीं जानते थे सो उसने इस (फत्हे मक्का) से भी पहले एक फौरी फत्हे (हुदैबिया से पलटते ही फत्हे ख़ैबर) अ़ता कर दी। (और उसके अगले साल फत्हे मक्का और दाख़िलए हरम अता फरमा दिया) ।

২৭. নিশ্চয়ই আল্লাহ্ তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-কে বাস্তবতার নিরিখে সত্য স্বপ্ন দেখিয়েছিলেন যে, যদি আল্লাহ্ চান, তবে তোমরা নিরাপদে ও শান্তিপূর্ণভাবে অবশ্য অবশ্যই মসজিদুল-হারামে প্রবেশ করবে; (কেউ) মাথা মুন্ডানো অবস্থায় এবং (কেউ) চুল ছাটা অবস্থায়, নির্ভয়ে। সুতরাং তিনি (হুদাইবিয়্যার সন্ধিকে এ স্বপ্নের ব্যাখ্যার পটভূমি হিসেবে) জানতেন, যা তোমরা জানতে না। অতঃপর (এ মক্কা বিজয়)-এরও পূর্বে তিনি এক আসন্ন বিজয় (হুদাইবিয়্যাহ্ থেকে ফিরতে না ফিরতেই খায়বার বিজয়) দান করেছেন (এবং এরপরের বছর মক্কাবিজয় এবং হারাম শরীফে প্রবেশাধিকার প্রদান করেছেন)।

(al-Fath, 48 : 27)
Play Copy
ہُوَ الَّذِیۡۤ اَرۡسَلَ رَسُوۡلَہٗ بِالۡہُدٰی وَ دِیۡنِ الۡحَقِّ لِیُظۡہِرَہٗ عَلَی الدِّیۡنِ کُلِّہٖ ؕ وَ کَفٰی بِاللّٰہِ شَہِیۡدًا ﴿ؕ۲۸﴾

28. وہی ہے جس نے اپنے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کو ہدایت اور دینِ حق عطا فرما کر بھیجا تاکہ اسے تمام ادیان پر غالب کر دے، اور (رسول صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی صداقت و حقانیت پر) اللہ ہی گواہ کافی ہےo

28. He is the One Who sent His Messenger (blessings and peace be upon him) with guidance and the Din (Religion) of truth to make it prevail over all other religions. And Allah is Sufficient as a witness (to the truthfulness and veracity of the Messenger [blessings and peace be upon him]).

28. Huwa allathee arsala rasoolahu bialhuda wadeeni alhaqqi liyuthhirahu AAala alddeeni kullihi wakafa biAllahi shaheedan

28. Han er Den som sendte Sendebudet Sitt (ﷺ) med rettledningen og sannhetens levemåte (religion) for å gjøre den overordnet alle levemåter. Og Allah er mer enn nok som vitne (over Sendebudets ﷺ sannhet og realitet).

28. वोही है जिसने अपने रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) को हिदायत और दीने हक़्क़ अ़ता फरमा कर भेजा ताकि उसे तमाम अद्‌यान पर ग़ालिब कर दे, और (रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम की सदाक़तो हक़्क़ानिय्यत पर) अल्लाह ही गवाह काफी है।

২৮. আর তিনিই তাঁর রাসূল (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-কে হেদায়াত ও সত্য দ্বীনসহ প্রেরণ করেছেন সমস্ত দ্বীনের উপর বিজয়ী করার জন্যে। আর (রাসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লামের সত্যনিষ্ঠতা ও সত্যতার উপর) সাক্ষী হিসেবে আল্লাহ্ই যথেষ্ট।

(al-Fath, 48 : 28)
Play Copy
مُحَمَّدٌ رَّسُوۡلُ اللّٰہِ ؕ وَ الَّذِیۡنَ مَعَہٗۤ اَشِدَّآءُ عَلَی الۡکُفَّارِ رُحَمَآءُ بَیۡنَہُمۡ تَرٰىہُمۡ رُکَّعًا سُجَّدًا یَّبۡتَغُوۡنَ فَضۡلًا مِّنَ اللّٰہِ وَ رِضۡوَانًا ۫ سِیۡمَاہُمۡ فِیۡ وُجُوۡہِہِمۡ مِّنۡ اَثَرِ السُّجُوۡدِ ؕ ذٰلِکَ مَثَلُہُمۡ فِی التَّوۡرٰىۃِ ۚۖۛ وَ مَثَلُہُمۡ فِی الۡاِنۡجِیۡلِ ۚ۟ۛ کَزَرۡعٍ اَخۡرَجَ شَطۡـَٔہٗ فَاٰزَرَہٗ فَاسۡتَغۡلَظَ فَاسۡتَوٰی عَلٰی سُوۡقِہٖ یُعۡجِبُ الزُّرَّاعَ لِیَغِیۡظَ بِہِمُ الۡکُفَّارَ ؕ وَعَدَ اللّٰہُ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ مِنۡہُمۡ مَّغۡفِرَۃً وَّ اَجۡرًا عَظِیۡمًا ﴿٪۲۹﴾

29. محمد (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) اللہ کے رسول ہیں، اور جو لوگ آپ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کی معیت اور سنگت میں ہیں (وہ) کافروں پر بہت سخت اور زور آور ہیں آپس میں بہت نرم دل اور شفیق ہیں۔ آپ انہیں کثرت سے رکوع کرتے ہوئے، سجود کرتے ہوئے دیکھتے ہیں وہ (صرف) اللہ کے فضل اور اس کی رضا کے طلب گار ہیں۔ اُن کی نشانی اُن کے چہروں پر سجدوں کا اثر ہے (جو بصورتِ نور نمایاں ہے)۔ ان کے یہ اوصاف تورات میں (بھی مذکور) ہیں اور ان کے (یہی) اوصاف انجیل میں (بھی مرقوم) ہیں۔ وہ (صحابہ ہمارے محبوبِ مکرّم کی) کھیتی کی طرح ہیں جس نے (سب سے پہلے) اپنی باریک سی کونپل نکالی، پھر اسے طاقتور اور مضبوط کیا، پھر وہ موٹی اور دبیز ہوگئی، پھر اپنے تنے پر سیدھی کھڑی ہوگئی (اور جب سرسبز و شاداب ہو کر لہلہائی تو) کاشتکاروں کو کیا ہی اچھی لگنے لگی (اللہ نے اپنے حبیب صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے صحابہ رضی اللہ عنھم کو اسی طرح ایمان کے تناور درخت بنایا ہے) تاکہ اِن کے ذریعے وہ (محمد رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم سے جلنے والے) کافروں کے دل جلائے، اللہ نے ان لوگوں سے جو ایمان لائے اور نیک اعمال کرتے رہے مغفرت اور اجرِ عظیم کا وعدہ فرمایا ہےo

29. Muhammad (blessings and peace be upon him) is the Messenger of Allah. And those with him are hard and tough against the disbelievers but kind-hearted and merciful amongst themselves. You see them excessively bowing and prostrating themselves. They simply seek Allah’s grace and pleasure. Their mark is an impression of prostrations on their faces (prominent on the foreheads as light). These traits of theirs are (mentioned) in the Torah and the (same) qualities are also (described) in the Injil (the Gospel). These (Companions) are like a cultivated crop (of Our Esteemed Beloved) which (first of all) brought forth its thin shoot, then made it powerful and strong, and then it thickened and stood straight on its stalk. (And when it flourished, bloomed and danced,) it delighted and charmed the cultivators. (Allah has, likewise, made the Companions of His Beloved strong, grown up trees of faith,) so that by means of them He would inflame the hearts of the disbelievers (that burn in the jealousy of the Holy Prophet Muhammad [blessings and peace be upon him]). Those who believe and do pious works, Allah has promised them forgiveness and an immense reward.

29. Muhammadun rasoolu Allahi waallatheena maAAahu ashiddao AAala alkuffari ruhamao baynahum tarahum rukkaAAan sujjadan yabtaghoona fadlan mina Allahi waridwanan seemahum fee wujoohihim min athari alssujoodi thalika mathaluhum fee alttawrati wamathaluhum fee alinjeeli kazarAAin akhraja shatahu faazarahu faistaghlatha faistawa AAala sooqihi yuAAjibu alzzurraAAa liyagheetha bihimu alkuffara waAAada Allahu allatheena amanoo waAAamiloo alssalihati minhum maghfiratan waajran AAatheeman

29. Mohammad (ﷺ) er Allahs Sendebud, og de som er med ham (ﷺ), er strenge og sterke mot de vantro, mot hverandre er de hjertevarme og milde. Du ser dem bøye seg og knele med ansiktet ned rikelig, de søker (kun) Allahs velvilje og tilfredshet. Merkene på ansiktet deres er spor av at de kneler med ansiktet ned (som skinner som lys på pannen deres). Disse beskrivelsene av dem finnes (også nevnt) i toraen, og disse beskrivelsene finnes (nedtegnet) i evangeliet. De (følgesvennene) er som (Vår høyaktede elskedes ﷺ) åker, som først skyter ut sitt tynne skudd, som så styrkes og tykner og så står rett på stengelen sin, (og når det blomstrer opp og vaier), hvor fortreffelig virker det ikke for såmennene da? (Slik har Allah skapt Sin elskedes ﷺ følgesvenner som troens fullvokste fortreffelige trær), slik at Han kan la de vantros (som er sjalu på Profeten Mohammad ﷺ) hjerte stå i sjalusiens brann. Allah har lovet dem som antar troen og handler rettskaffent, tilgivelse og en svær belønning!

29. मुहम्मद (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं, और जो लोग आप (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की मइय्यत और संगत में हैं (वोह) काफिरों पर बहुत सख़्त और ज़ोरावर हैं आपस में बहुत नर्म दिल और शफीक़ हैं। आप उन्हें कसरत से रुकूअ़ करते हुए, सुजूद करते हुए देखते हैं वोह (सिर्फ) अल्लाह के फज़्ल और उसकी रज़ा के तलबगार हैं। उनकी निशानी उनके चेहरों पर सज्दों का असर है (जो बसूरते नूर नुमायां है) । उनके ये औसाफ तौरात में (भी मज़्कूर) हैं और उन के (येही) औसाफ इंजील में (भी मर्कूम) हैं। वोह (सहाबा हमारे महबूबे मुकर्रम की) खेती की तरह हैं जिसने (सबसे पहले) अपनी बारीक सी कूंपल निकाली, फिर उसे ताक़तवर और मज़बूत किया, फिर वोह मोटी और दबीज़ हो गई, फिर अपने तने पर सीधी खड़ी हो गई (और जब सरसब्ज़ो शादाब होकर लहलहाई तो) काश्तकारों को क्या ही अच्छी लगने लगी (अल्लाह ने अपने हबीब सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम के सहाबा रदियल्लाहु अ़न्हुम को उसी तरह ईमान के तनावर दरख़्त बनाया है) ताकि उनके ज़रीए वोह (मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम से जलने वाले) काफिरों के दिल जलाए, अल्लाह ने उन लोगों से जो ईमान लाए और नेक आमाल करते रहे मग़्फिरत और अज्रे अ़ज़ीम का वादा फरमाया है।

২৯. মুহাম্মাদ (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম) আল্লাহ্‌র রাসূল; আর যারা তাঁর সাহচর্যে রয়েছেন তাঁরা কাফেরদের প্রতি কঠোর, কিন্তু নিজেদের মধ্যে পরস্পরের প্রতি দয়ালু ও সহানুভূতিশীল। আপনি তাদেরকে দেখবেন রুকু ও সেজদায় অবনত, তাঁরা (কেবল) আল্লাহ্‌র অনুগ্রহ ও সন্তুষ্টি কামনা করেন। তাদের লক্ষণ, তাদের মুখমন্ডলে সেজদার (নূরানী লক্ষণীয়) প্রভাব পরিস্ফুট। তাদের এ গুণাবলী তাওরাতে (উল্লেখ) রয়েছে এবং তাদের (এসব) গুণাবলী ইঞ্জিলেও (লিখিত) রয়েছে। এসব (সাহাবায়ে কেরাম আমাদের সম্মানিত মাহবুবের) কর্ষিত চারাগাছের ন্যায়, যা (সবার আগে) ক্ষুদ্র কিশলয় নির্গত করে, অতঃপর তা শক্তিশালী ও পুষ্ট হয় এবং পরে তা দৃঢ় হয়ে কান্ডের উপর দাঁড়ায়। (আর যখন তা সবুজ ও সতেজ হয়ে দুলতে থাকে) তখন তা কৃষককে আনন্দ দেয়। (আল্লাহ্ স্বীয় হাবীবের সাহাবাগণকে এমনি স্থুলকান্ডবিশিষ্ট ঈমানের বৃক্ষে পরিণত করেছেন।) যাতে তিনি তাদের মাধ্যমে (সম্মানিত নবী মুহাম্মাদ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লামের প্রতি হিংসায় জ্বলে মরা) কাফেরদের অন্তর্জ্বালা সৃষ্টি করতে পারেন। যারা ঈমান আনে এবং সৎকর্ম সম্পাদন করে আল্লাহ্ তাদেরকে প্রতিশ্রুতি দিয়েছেন ক্ষমা ও মহাপ্রতিদানের।

(al-Fath, 48 : 29)